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श्री तिलकेश्वर पार्श्वनाथ तीर्थ धार्मिक पारमार्थिक सार्वजनिक न्यास एवं श्री संघ ट्रस्ट इंदौर

इंदौर मध्य प्रदेश आचार्य श्री वीररत्नसूरीश्वरजी म.सा. एवं आचार्य श्री पद्मभूषणरत्न सूरीश्वरजी म.सा. आदिठाणा 22 का
स्वर्णिम चातुर्मास वर्ष 2023 दिनांक – 18/08/2023
धर्म की धारणा, परमात्मा की शरणा ही दुःखों का हरणा है
मुनिराज श्री ऋषभरत्नविजयजी ने दुःखों की प्रकृति के संबंध में समझाया कि, एक दुःख को दूर करने में चार और सामने खड़े हो जाते है। इस संसार में आपके लिये न तो कोई सहायक है, न संबल देने वाला है और न ही कोई शरण देने वाला है। यहाँ हम असहाय स्थिति में निराधार हो कर गुजर रहे हैं एवं हमारा कोई आधारभूत नहीं है। ऐसी परिस्थिति में केवल परमात्मा ही शरणभूत हैं। मुसीबत में हम पुकारते है रक्षः-रक्षः जिनेश्वरम अर्थात हे प्रभु हमारी रक्षा करो। अतः दुःखों में धर्म की राह एवं परमात्मा की शरण लेने में ही कल्याण है। निम्न चार बड़े दुःख सभी को लगातार परेशान करते हैं।
1. जन्म का दुःख – जन्म के समय जीव को बहुत पीड़ा होती है। एक नौजवान के शरीर में गरम-गरम हजारों सुइयाँ चुभोई जाएँ इतनी पीड़ा जन्म के समय होती है। देवताओं को भी देवलोक छोड़ कर पुनः जन्म लेने में बहुत दुःख होता है।
2. जरा (बुढ़ापे) का दुःख – संसार में कोई भी वृद्धावस्था पसंद नहीं करता है। प्रतिदिन हम बुढ़ापे की ओर बढ़ते जाते हैं यह एक कटु सत्य है। साधना के लिये शक्तिशाली शरीर की आवश्यकता होती है वह इस अवस्था में कहाँ मिलेगी। बाल्यावस्था में समय है परंतु शक्ति और समझ नहीं है। युवावस्था में समझ और शक्ति है परंतु समय नहीं है और बुढ़ापे में समझ एवं समय है परंतु शक्ति नहीं होती है। अतः जब तीनों हमारे पास हों तब धर्म के लिये तत्पर हो जाना चाहिये। इसलिये ज्ञानी भगवंत कहते हैं “अवस्था आने से पहले व्यवस्था कर लो”।
3. रोग का दुःख – हर व्यक्ति रोगमुक्त रहना चाहता हैं परंतु आज तक शायद ही कोई ऐसा होगा जिसको कोई रोग नहीं हुआ हो। रोग जब नासूर बन जाये और सभी सहारे सहायक नहीं हों एवं निरर्थक हो जाएँ तब प्रभु याद आते हैं। रोगों का अंत नहीं हो सकता है। श्रेणिक राजा एवं रोग शय्या पर पड़े श्रेष्ठीपुत्र का उदाहरण देकर संयम से रोग मुक्ति का विवरण दिया।
4. मृत्यु का दुःख – मृत्यु एक अटल सत्य है क्योंकि जो जन्मा है उसकी मृत्यु निश्चित है और आज-तक कोई इसे मार नहीं सका है। मृत्यु का महा दर्द तो मरने वाला ही समझता है।
उक्त चार दुःखों में से दो दुःख (बुढ़ापा व रोग) न भी आये परंतु दो दुःख (जन्म व मृत्यु) तो निश्चित हैं। धर्म की शरण एवं परमात्मा का पथ इन दुःखों से मुक्ति दिला सकता है और मोक्ष की राह आसान हो जाती है। अष्ट प्रकारी पूजा के स्त्रोत “जन्म जरा मृत्यु निवारनाय श्रीमते जिनेंद्राय” में भी यही प्रार्थना है। राजेश जैन युवा ने बताया की –
मुनिवर का नीति वाक्य –
“संकल्प जितना सशक्त होगा, सफलता उतनी सुंदर होगी“
इस अवसर पर मुकेश पोरवाल, प्रमोद मेहता नीलेष पोरवाल मनीष सकलेचा, साधना जैन अस्मिता जैन व सिद्धि तप,विहरमान तप के तपस्वी आदि व कई पुरुष व महिलायें उपस्थित थीं। दिलीप भाई शाह ने श्री संघ में वर्षीतप करवाने की योजना की जानकारी भी दी।
युवा राजेश जैन
94250-65959 रिपोर्ट अनिल भंडारी

 

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