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श्री तिलकेश्वर पार्श्वनाथ तीर्थ धार्मिक पारमार्थिक सार्वजनिक न्यास एवं श्री संघ ट्रस्ट इंदौर

इंदौर मध्य प्रदेश

आचार्य श्री वीररत्नसूरीश्वरजी म.सा. एवं आचार्य श्री पद्मभूषणरत्न सूरीश्वरजी म.सा. आदिठाणा 22 काl
स्वर्णिम चातुर्मास वर्ष 2023 दिनांक – 13/08/2023

गुणों के प्रति आदर भाव रखो एवं धर्म क्रिया सतत व सख्ती से करो
मुनिराज श्री ऋषभरत्नविजयजी ने जीवन को धन्य बनाने के आवश्यक गुणों की चर्चा करते हुए बताया कि, लॉटरी में मिले मनुष्य जीवन को उपवन बनाना है न की कचरा घर । धर्म आराधना के अगले तीसरे एवं चतुर्थ तत्वों की व्याख्या की ।
3. गुणवानों के लिये अनुराग भाव प्रकट करना – गुणों के प्रति, गुणी जनों के प्रति एवं गुण स्थान के प्रति बहुमान भाव प्रकट करने से गुणवानों के प्रति अनुराग भाव उत्पन्न होता है। ऐसा करने से उनमें रहे हुए गुण हम में भी प्रकट हो सकते है। जड़ पदार्थों की आसक्ति ने संसार में जकड़ रखा है जिसको छोड़ने पर ही हम गुणी जनों की अनुमोदना कर पायेंगे। गुणवानों की अनुमोदना के लिये कड़ा पुरुषार्थ बहुत आवश्यक है। गुणवान बनना आसान है परंतु उनकी प्रशंसा करना/अनुराग भाव प्रकट करना कठिन कार्य है क्योंकि अहंकार भाव ऐसा करने से रोकता है। पोषध पालते समय बोले जाने वाले सूत्र में बताया गया है कि, भगवान महावीर ने त्रिलोक के नाथ होते हुए भी दृढ़ वृत धारी श्रावकों के गुणों की प्रशंसा की थी। महाविदय क्षेत्र के श्री सीमंधर स्वामी भी भरत क्षेत्र के निवासियों की प्रशंसा करते हैं क्योंकि उनके पास शत्रुंजय जैसा शाश्वत तीर्थ है। जहाँ पर गुणी जन दिखे उनकी प्रशंसा करें और दोष प्रकट करने की बात तो दूर, निंदा भी नहीं करना है।
4. क्रिया में अप्रमाद – किसी भी धार्मिक क्रिया करते समय प्रमाद (आलस्य) नहीं करना है। जैसे नोटों का बंडल देखकर मुखमंडल चमकता है वैसा ही आनंद-भाव क्रिया करते समय होना चाहिये। एक माला भी रुचि व आनंद से जपने का प्रयास करो और एक मनके में भी यदि भाव आ गया तो हमारी क्रिया सफल है। क्रिया के तीन तत्व हैं यह हमेशा ‘सतत’ होना चाहिये न की कभी-कभी अर्थात अपने सांसारिक कार्यों को धर्म के कार्यों के साथ एडजस्टमेंट करके रखें जिससे धर्म के कार्यों में रुकावट न हो, दूसरा ‘सख्त’ होना आवश्यक है ढुलमुल रवैया नहीं हो अर्थात जो संकल्प लिया हो उसको हर-हाल में पूर्ण करें कितनी भी कठिनाई हो धर्म नहीं छोड़ना है एवं तीसरा ‘सरस’ मन से करें अर्थात मन में उल्लास एवं प्रसन्नता का भाव हो। मुनिवर ने सिद्धि तप एवं बीस विहरमान के सभी तपस्वियों/आराधकों की प्रशंसा की क्योंकि उनके तप में यह तीनों तत्व विद्यमान हैं।राजेश जैन युवा ने बताया की
विषय का वैराग्य, कषायोँ का त्याग, गुणवानों के प्रति अनुराग एवं क्रिया में अप्रमाद से धर्म क्रिया जीवन में सुख एवं समता लाने वाली बनेगी। मुनिवर के प्रवचन ‘सतत’ गति एवं ‘सरस’ भावना से चल रहे है, सभी आनंद अवश्य लेवें ।
मुनिवर के नीति वाक्य “जैसा सोचोगे, वैसा ही देखोगे” “क्रिया करने के हजारों रास्ते, न करने के हजारों बहाने हैं“
मुनिवर ने श्री सिद्धि तप आराधकों के 28 उपवास पूर्ण होने पर आगे अंतिम आठ उपवास के पच्चखान करवाए। इस मौके पर उनके परिवारजन प्रमोद पोरवाल, गौरव जैन, राजेश सराफ़, ललवानी, सुमीत रांका आदि व कई पुरुष व महिलायें उपस्थित थीं। तपस्वियों की बहुत बहुत अनुमोदना की गयी। इस अवसर पर वीरेन्द्र बम ने चातुर्मास समिति की गतिविधियों की जानकारी दी

रिपोर्ट अनिल भंडारी।

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