इंदौर मध्य प्रदेश
आचार्य श्री वीररत्नसूरीश्वरजी म.सा. एवं आचार्य श्री पद्मभूषणरत्न सूरीश्वरजी म.सा. आदिठाणा 22 का
स्वर्णिम चातुर्मास वर्ष 2023 दिनांक – 09/09/2023
दान का धर्म उच्च कोटी की धर्म आराधना है
मुनिराज श्री ऋषभरत्नविजयजी ने दान देने के संबंध में प्रवचन दिया। परमात्मा के भाव सबके लिये समान होते हैं चाहे वह उपसर्ग व तिरस्कार करे या सम्मान और सुरक्षा करे। जैसा श्री पार्श्वनाथ भगवान ने उपसर्ग करने वाले कमठ और रक्षा करने वाले धरणेनद्र-पद्मावती दोनों को समान रूप से रखा था। श्री पार्श्वनाथ के नाम के पहले कई विशेषण लगते हैं जैसे की 108 पार्श्वनाथ हैं यह भगवान का प्रभाव वाले स्वरूप है। सिर्फ पार्श्वनाथ प्रभु स्वयं को स्वीकारना अर्थात स्वभाव जो हमको परमात्मा बना देते है। आत्मा के निकट पहुँचने के लिये और परमात्मा के गुणों अपनाने के लिये उनका स्वभाव जान लेना चाहिये।
परमात्मा करुणा के सागर थे इसलिए उन्होंने एक वर्ष तक वर्षीदान किया जिससे दरिद्रता दूर हो एवं सभी सुखी और समृद्ध हों। प्रभु का वर्षीदान दान की महत्ता को प्रकट करता है। परमात्मा के लिये अक्षय दान, साधु-भगवंत के लिये सुपात्र दान एवं साधर्मी के लिये दिया गया दान कभी निष्फल नहीं होता है। जो दिया जाए वह दान एवं यह सभी जगह फलदायी होता है। अक्षयदान से परमात्मा के गुण और सुपात्र दान से साधुभगवंत के गुण मिलते हैं । दान करते समय ध्यान देने योग्य कर्तव्य।
(1) भद्र व्यवहार – दान करते समय दानी का व्यवहार बहुत मधुर एवं मृदुल होना चाहिये। दान मान व मनुहार करके दिया जाता उससे ऐसा प्रतीत हो कि दान लेने वाले से अधिक दान करने वाले की गरज है और लेने वाले को हीन भावना उत्पन्न नहीं हो।
(2) हर्ष के आँसू – दान दाता की आँखों में हर्ष के आँसू होना इस बात का प्रतीक है कि, उसके मन की भावना पूर्ण हुई है। दान देने में हर्ष आँसू आना मतलब दान की भावना पूरी हो रही है। दान लेने वाली आत्मा परमात्मा भी बनने वाली हो सकती है।
(3) हृदय में बहुमान का भाव – दान कर्ता के मन में यह भाव हो कि, वाह में कितना भाग्यवान हूँ जो मुझको दान का अवसर प्राप्त हुआ है। दान देते समय साधर्मी के प्रति बहुमान भाव दान सफल करता है। पुण्या श्रावक इसका सर्वश्रेष्ठ दृष्टांत है।
(4) उत्तम द्रव्यों का उपयोग – दान की भक्ति हमेशा उत्तम द्रव्यों से की जाना चाहिये। उच्च गुणवत्ता वाली वस्तु दान के उपयोग में लाने से दान महान हो जाता है।
दान करे दरिद्रता दूर, शील दे सद्गति, तप करे कर्म का नाश और भाव मिटाए भव भ्रमण। दान से दान ग्रहीता एवं दान कर्ता दोनों की दुर्गति एवं दरिद्रता दूर होती है। दान सभी अर्थों को साधने वाला है। युवा राजेश जैन बताया की
मुनिवर का नीति वाक्य
“‘भद्रता से दान बहुमान का भाव कराए भव पार”
श्री मुकेशजी पोरवाल ने आगामी विभिन्न धार्मिक गतिविधियों की जानकारी दी। कल 10 सितंबर रविवार को ज्ञान की देवी माँ सरस्वती की संगीतमयी भव्य पूजन एवं भक्ति आयोजित की गई है जिसमें समाज के बच्चे सम्मिलित होंगे। इस सम्पूर्ण कार्यक्रम के लाभार्थी विकास शिल्पा जैन । इस अवसर पर कमल फुलेचा, अजय सुराना, विकास जैन एवं कई पुरुष व महिलायें उपस्थित थीं ।
रिपोर्ट अनिल भंडारी
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