विवेक से चक्षु खोलकर विचारों में श्रद्धा लाना ही परमात्मा की सेवा है:- आचार्य श्री वीररत्न सुरीश्वर जी म.सा. इंदौर मध्य प्रदेश श्री तिलकेश्वर पार्श्वनाथ तीर्थ धार्मिक पारमार्थिक सार्वजनिक न्यास एवं श्री संघ ट्रस्ट इंदौर
आचार्य श्री वीररत्नसूरीश्वरजी म.सा. एवं आचार्य श्री पद्मभूषणरत्न सूरीश्वरजी म.सा. आदिठाणा 22 का
स्वर्णिम चातुर्मास वर्ष 2023 दिनांक – 17/08/2023
विवेक से चक्षु खोलकर विचारों में श्रद्धा लाना ही परमात्मा की सेवा है।
मुनिराज श्री ऋषभरत्नविजयजी ने बताया एक बार अंधकार और प्रकाश परमात्मा के सम्मुख उपस्थित हुए एवं अंधकार ने न्याय माँगा कि प्रकाश मेरे को रहने नहीं देता है। प्रभु ने सूर्य को बुलवाया तो अंधकार गायब हो गया क्योंकि उसके सामने वह टिक नहीं सकता है। ठीक इसी प्रकार जिसके पास ज्ञान का प्रकाश हो उसका अज्ञान का अंधेरा दूर हो जाता है। इसलिये परमात्मा से प्रार्थना करें कि अज्ञान का अंधेरा दूर हो। हमारे जीवन में चार चक्षुओं की अवस्था निम्न प्रकार से है।
1. चर्म चक्षु – सभी जीवों के पास देखने के लिये नेत्र मिले हुए हैं वे चर्म चक्षु हैं। आँखों से जो दिखाई दे रहा है वह चर्म चक्षु हैं जो जीवन को बर्बाद भी कर सकते हैं। चर्म चक्षु की आसक्ति पाप को आमंत्रण है और इनको निर्णायक बनाया तो पतन निश्चित है जैसा कि रावण का हुआ था। जीवन में दो तरह के सुख होते हैं एक अभिप्राय और दो अनुभूति। यह ज़रूरी नहीं है कि, अभिप्राय का सुख मिले तो अनुभूति का सुख भी मिले क्योंकि देखी हुई वस्तु खराब भी हो सकती है। इसलिये केवल देखकर निर्णय नहीं लिया जाता है।
2. विचार चक्षु – मन के विचार को विचार चक्षु कहते है। विचार चक्षु को भी निर्णायक नहीं बना चाहिये । दुर्योधन विचार चक्षु का गुलाम था इसलिये महाभारत का युद्ध हो गया। विचार चक्षु पर विजय प्राप्त करने के लिये चर्म चक्षु पर नियंत्रण बहुत आवश्यक है। जिसके पास प्रभु हैं उसको कोई बाल बाँका नहीं कर सकता है। जिस पर देव दृष्टि पड़ती है उसके पापों का नाश निश्चित है। जहाँ पर मन हो वहाँ विचार मत ले जाओ।
3. विवेक चक्षु – जिसके पास विवेक के चक्षु हैं वह कभी अशांत नहीं बन सकता है। अच्छे-बुरे, सही-गलत एवं उचित व अनुचित का निर्णय विवेक चक्षु से ही होता है। इस संबंध में विभिन्न दृष्टांत है कि विवेक एवं अनुभव से लिये गए निर्णय न्यायोचित होते हैं। इस चक्षु से ही मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।
4. श्रद्धा चक्षु – आस्था और विश्वास के चक्षु जिसके पास है वे ही प्रभु के निकट है। अधिकांशतः जगत पर अधिक और जगत को बनाने वाले परमात्मा पर कम विश्वास होता है। हनुमान, सुदामा और गौतम श्रद्धा चक्षु के सर्वोत्तम उदाहरण हैं। अटूट आस्था के मार्ग पर चलकर ही परमात्मा प्राप्त हो सकते हैं।
सारांश में श्रद्धा चक्षु पर विश्वास करके विवेक चक्षु को जाग्रत करके विचार चक्षु को परमात्मा की आज्ञा के अनुसार बनाएं और चर्म चक्षु को निर्णायक न बनने दे तभी जीवन उज्ज्वल हो सकता है। राजेश जैन युवा ने बताया की
मुनिवर का नीति वाक्य – “समझ से ही समाज है“
इस मौके पर अशोक गोखरू, अजय सुराना, तपन शाह, प्रमोद कोठारी आदि व कई पुरुष व महिलायें उपस्थित थीं। श्री दिलीप भाई शाह ने 19/8 से 22/8 तक होने वाले श्री सिद्धि तप के तपस्वियों के लिये चार दिवसीय उत्सव की जानकारी भी दी।
युवा राजेश जैन
94250-65959 रिपोर्ट अनिल भंडारी
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