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रायपुर स्मार्ट सिटी: अधूरे प्रोजेक्ट्स और बढ़ती समस्याएं

रायपुर, 08 जनवरी 2025

भारत सरकार ने 2015 में स्मार्ट सिटी मिशन शुरू किया था, जिसका उद्देश्य शहरी क्षेत्रों को आधुनिक तकनीक और सुविधाओं से लैस करना था। इस योजना के तहत 100 शहरों को चुना गया, जिन्हें बेहतर बुनियादी ढांचा, स्मार्ट ट्रैफिक सिस्टम, सस्टेनेबल विकास और बेहतर नागरिक सुविधाएं प्रदान करनी थीं। रायपुर भी इसमें से एक था। रायपुर को स्मार्ट सिटी योजना में शामिल किए जाने पर शहरवासियों को उम्मीद थी कि उनका शहर एक मॉडल सिटी बनेगा। लेकिन रायपुर स्मार्ट सिटी परियोजना न केवल समय पर पूरी नहीं हुई, बल्कि बजट का बड़ा हिस्सा उन कामों पर खर्च हुआ जो पहले से ही नगर निगम और अन्य विभागों के अधीन थे।

स्मार्ट सिटी के नाम पर रायपुरवासियों को जो सुविधाएं मिलनी थीं, वो भी नहीं मिल पाईं। शहर में पार्किंग बड़ी समस्या बन चुकी है। सार्वजनिक और सरकारी जगहों पर वाहनों की बेतरतीब भीड़ है।पर 38 करोड़ रुपए से अधिक पार्किंग पर खर्च करने के बाद भी समस्या दूर नहीं हो सकी। बेतरतीब ट्रैफिक और अव्यवस्थित पार्किंग ने नागरिकों के लिए रोजमर्रा की जिंदगी को मुश्किल बना दिया है। हालात ऐसे हैं कि 27 करोड़ रुपए की कलेक्टोरेट की मल्टीलेवल पार्किंग में आगजनी जैसे हादसों से बचाव तक का इंतजाम नहीं है।यहाँ न सिर्फ़ आगजनी बल्कि रेप जैसी वारदात हो चुकी है पर प्रशासन की इसके लिये तैयारियाँ अधूरी हैं। बाजारों को ​व्यवस्थित करने के लिए भी बनाए ये गई करोड़ों की परियोजनाएँ भी अधर में हैं और परेशानी दूर नहीं हुई । इस प्रकार स्मार्ट सिटी अपने उद्देश्य व नई सुविधाएं विकसित करने में कामयाब नहीं हो सकी। शहरवासियों को बुनियादी सुविधाएं जैसे ट्रैफिक प्रबंधन, स्मार्ट सिग्नल, और हरित क्षेत्र का विस्तार नहीं मिल सका।

निर्धारित बजट के कुल खर्च का लगभग आधा हिस्सा ऐसे कार्यों पर लगाया गया जो नगर निगम के दायरे में आते थे। स्मार्ट सिटी के लिए निर्धारित बजट का इस्तेमाल नई सुविधाओं पर न होकर पुराने कार्यों को सुधारने में किया गया। अधूरी परियोजनाओं और योजना में ख़ामियों के चलते करोड़ों रुपयों का व्यय व्यर्थ चला गया। अधूरे प्रोजेक्ट्स और ओवरबजट के चलते लागत बहुत बढ़ जाने से शहर का विकास अवरुद्ध हो गया।

राजनीतिक दबाव और ब्यूरोक्रेसी के बीच विवाद की स्थिति नहीं बने, स्मार्ट सिटी परियोजना को सुचारू रूप से चलाने के लिए एक सलाहकार समिति बनाई गई थी, लेकिन पिछले 10 वर्षों में इनकी बैठकें लगभग नहीं के बराबर हुईं । सलाहकार समिति में पहले जनप्रतिनिधियों को बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में नहीं रखा गया। एमडी बदलने के साथ-साथ योजना में बार-बार बदलाव हुआ। हर बार एमडी के बदल जाने के बाद प्लान में भी बदलाव कर लिया गया। जब रजत बसंल एमडी रहे, उन्होंने मार्केट और ट्रैफिक पर फोकस किया। फिर शिव अनंत तायल ने बतौर एमडी व सीईओ रायपुर स्मार्ट सिटी को हेरिटेज और कल्चरल एक्टिविटी जैसे कामों पर ज्यादा ध्यान दिया। इससे पहले के काम पिछड़ते चले गए। इसके बाद सौरभ कुमार ने शिक्षा, तालाबों की सफाई जैसे प्रोजेक्ट चुने।​​​​​​​बार बार दिशा व प्राथमिकता बदलने ने योजना की असफलता और विलम्ब में और इज़ाफ़ा किया।

स्मार्ट सिटी योजना का उद्देश्य शहरों को आधुनिक और सुविधाजनक बनाना था। लेकिन रायपुर में यह योजना सही प्रबंधन और रणनीति की कमी के कारण अधूरी रह गई। अगर समय पर परियोजनाएं पूरी की जाएं और प्रशासनिक और राजनीतिक समन्वय बेहतर हो, तो रायपुर स्मार्ट सिटी का सपना साकार हो सकता है। आशा है कि आने वाले समय में शहर को बेहतर बनाने के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे।

(राजीव खरे ब्यूरो चीफ छत्तीसगढ़)

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