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बालासोर रेल दुर्घटना के बाद सरकार और विपक्ष की बेतुकी बयानबाज़ी के बीच अस्पताल में ब्लड डोनेट करने के लिये सैकड़ों लोगों ने पहुँच कर बता दिया कि मानवता ज़िंदा है।

राष्ट्रीय ब्यूरो

नई दिल्ली

बालासोर रेल दुर्घटना में 3 ट्रेनों की भिड़ंत होने से 275 लोगों की जान चली गई।सूत्रों के अनुसार यदि इन ट्रेनों में रेल कवच लगा होता तो यह हृदय विदारक दुर्घटना रोकी जा सकती थी।
रेल कवच एक ऑटोमैटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम है, जिसे भारत में रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइजेशन ( RDSO ) ने बनाया है। यह 2012 में बनकर तैयार हुआ था और मनमोहन सिंह सरकार में इसका फर्स्ट ट्रायल हुआ था। इस कवच को इंजन और पटरियों में लगी डिवाइस के माध्यम से नियंत्रित किया जाता है, और किसी खतरे की स्थिति में ट्रेन में अपने आप ब्रेक लग जाते हैं, चाहे स्पीड कितनी भी हो । इससे ट्रेनों के टकराने की संभावना नहीं रहती।इस रेल दुर्घटना को लेकर ये बात सामने आई है कि सही सिग्नल नहीं मिलना इस हादसे का कारण है। अगर कोरोमंडल एक्सप्रेस व बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट ट्रेनों के इंजनों में यह कवच लगा होता तो इस हादसे को रोका जा सकता था। क्योंकि जैसे ही कोरोमंडल एक्सप्रेस सिग्नल को पार करती, यह कवच ऑटोमैटिक ब्रेक लगा कर ट्रेन को मालगाड़ी से टकराने के लगभग 400 मीटर पहले ही रोक देता। साथ ही गलत सिग्नल को पार करते ही पायलट और कंट्रोल रूम को भी एलर्ट मिल जाता, याने कोरोमंडल एक्सप्रेस मालगाड़ी से टकराने से पहले ही रुक जाती।
इसी प्रकार यदि बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट के इंजन में यह कवच लगा होता तो यह ट्रेन भी भिड़ंत होने के पहले ही रुक जाती।

ग़ौरतलब है कि वर्तमान में देश में कुल 13,215 इलेक्ट्रिक इंजन हैं, जिनमें से मात्र 65 लोको इंजनों में ही यह रेल कवच लगाया जा सका है।यह दुर्घटना और रेल कवच लगाने में हो रहा विलंब रेल मंत्रालय की असफलता है और इससे आत्ममुग्धता और उद्घाटनों के प्रचार रथ पर सवार केंद्र सरकार की रेल नीति की समीक्षा की जानी ज़रूरी है।सरकार फिर से सोचना चाहिए कि उसकी प्राथमिकता वर्तमान रेल नेटवर्क में अत्यधिक ट्रेनों का हाई स्पीड पर संचालन, (जिसके चलते रेल ट्रैक का समुचित रुटीन मेंटेनेंस करना बहुत ही कठिन है) होना चाहिए या रेल ट्रैक की वास्तविक हालत के अनुसार ट्रेनों का संचालन होना चाहिए। आख़िर देश का विकास सिर्फ़ वाहवाही लेना ही नहीं देश की आम जनता को सुरक्षित सुविधा दिलाना भी है।

लालू यादव के रेल मंत्री कार्यकाल के दौरान रेलवे ने राजस्व अर्जित करना आरंभ किया जबकि यात्री किराये में वृद्धि नहीं हुई। इसके बाद से रेलवे का राजस्व तो बढ़ता रहा और आधुनिकीकरण व स्वच्छता सुविधाएँ भी बढ़ीं पर रेलवे ट्रैक के रखरखाव व सुरक्षा पर यथोचित ध्यान नहीं दिया गया, जो कि ट्रेन व यात्रियों के लिये बहुत ज़रूरी है।सीएजी की रिपोर्ट में भी 2017 से 2021 के बीच ट्रेन की 10 दुर्घटनाओं का कारण डीरेलमेंट था और इस रिपोर्ट में इस दौरान ट्रैक की जाँच एवं मेंटेनेंस न होने और सुरक्षा की अनदेखी पर गंभीर टिप्पणी की गई थी ।कुछ वर्ष पहले रेल बजट आम बजट के पहले आता था क्योंकि रेलवे पर आवागमन के लिये निर्भर आम जनता के साथ सरकार भी पारदर्शी रहती थी। यहाँ तक कि चुनाव में भी रेल बजट का बहुत प्रभाव रहता था और इस पर संसद में गंभीर बहस होती थी।पर मोदी सरकार में इसे अलग से प्रस्तुत न कर आम बजट के साथ जोड़ दिया तो अब इस पर उतनी चर्चा नहीं हो पाती ।केंद्र सरकार आधुनिक हाई स्पीड ट्रेन चलाने और स्वच्छता पर जितना ज़ोर दे रही है उतनी ही बल्कि शायद उससे ज़्यादा आवश्यकता ट्रेनों व ट्रैक के समुचित रखरखाव व सुरक्षा की है। क्योंकि रेलवे का मुख्य उद्देश्य नागरिक को सस्ती सुलभ आवागमन सुविधा देना है ना कि इसे अमीरों के लिये विशेष सुविधा बनाना।

बुलट ट्रेन को बनाने के लिये जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी (जेआईसीए) ने मुंबई-अहमदाबाद उच्च के निर्माण के लिए 300 बिलियन येन (लगभग 18,750 करोड़ रुपये) का आधिकारिक विकास सहायता (ओडीए) ऋण प्रदान करने के लिए भारत के साथ एक समझौता किया है। जापान से लिए इस कर्ज को 15 सालों तक न लौटाने की छूट भी मिली है, पर 16वें साल से 50 साल की अवधि के अंदर यह लोन चुकाना होगा, जिस पर 0.1 प्रतिशत का ब्याज लगेगा। आईआईएम अहमदाबाद की रिपोर्ट के अनुसार अहमदाबाद और मुंबई के बीच चलने वाली बुलेट ट्रेन रोज़ जब 100 फेरे लगाएगी तब रेलवे समय पर इस लोन को लौटा पाएगा । जिसके लिये ट्रेन को रोजाना लगभग 1 लाख से भी ज़्यादा यात्रियों को ढोना होगा याने रेलवे को हर घंटे 3 ट्रेनों को रवाना करना होगा।अब फिर वही यक्ष प्रश्न देश के सामने है कि देश के लिये हाई स्पीड बुलेट ट्रेन ज़्यादा ज़रूरी है या ट्रेन व ट्रैक की सुरक्षा का आधुनिकीकरण ।यदि इस पर पर्याप्त बजट रखा जाता तो संभवतः बहुत से इंजन व ट्रैक में रेल कवच लग जाते और दुर्घटना व लोगों की जानें बच जातीं।

दुर्घटना के बाद जिस तरह सरकार और विपक्ष बयानबाज़ी कर रहे हैं वह दुखद व शर्मनाक है। सरकार जहां पुरानी सरकारों के कार्यकाल में हुई दुर्घटनाओं की संख्या गिना रही है वहीं विपक्ष मंत्री के इस्तीफ़े की बेतुकी माँग कर रहा है। यह भी महत्वपूर्ण है कि दुर्घटना जिस राज्य ( ओड़िशा ) में हुई वहाँ कई बार तूफ़ान आते रहते हैं और वहाँ का आपदा प्रबंधन बहुत अच्छा है। संभवतः इसी लिये स्थानीय प्रशासन और लोगों ने बिना समय गँवाए फ़ौरन स्थल पर पहुँच कर यात्रियों विशेषकर घायलों की तत्काल प्रभावी मदद कर आपदा प्रबंधन की एक मिसाल क़ायम की जो क़ाबिले तारीफ़ है। छत्तीसगढ़ के जांजगीर- चाँपा में वर्ष 1997 में अहमदाबाद- हावड़ा एक्सप्रेस की दुर्घटना में भी स्थानीय ग्राम वासियों ने भी आपदा में घायलों की तुरंत मदद कर बहुत से यात्रियों की जान बचाई थी। हमारे देश में दुर्घटनाओं के बाद हमेशा स्थानीय लोग मदद के लिये आगे आते हैं जो हमारी विशेषता है। पर सबसे अच्छी बात यह है कि सरकार व विपक्ष की शर्मनाक बयानबाज़ी के बीच अस्पताल में सैंकड़ों लोगों की घायलों को खून देने की स्वस्फूर्त पहल ने यह साबित कर दिया कि मानवता ज़िंदा है और हर राजनीति से ऊपर है ।

(राजीव खरे स्टेट ब्यूरो चीफ़ छत्तीसगढ़ एवं राष्ट्रीय उप संपादक)

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