इंदौर मध्य प्रदेश
राजेश जैन युवा ने बताया कि आयोजन किया गया। यह आयोजन विशेष रूप से आज की नई पीड़ी के लिये था। इस पूजन एवं शिविर के माध्यम से सभी बच्चों को यह संदेश दिया गया की ‘ज्ञान’ संसार में ऐसी विशेषता है जिसके बिना मनुष्य मृत समान है। ज्ञान मनुष्य की आवश्यक इंद्रिय है जो सम्पूर्ण शरीर का संचालन करती है। ज्ञान की साधना के लिये माँ सरस्वती की आराधना अति आवश्यक है क्योंकि परम पिता परमात्मा की वाणी को सरस्वती का रूप माना गया है।
सरस्वती महा पूजन के अवसर पर मुनिराज श्री ऋषभरत्नविजयजी ने ज्ञान की महिमा को समझाया। अज्ञानता के अंधकार में डूबे व्यक्ति को ज्ञान का प्रकाश देने वाली माँ सरस्वती होती है। सरस्वती का अर्थ होता है जिसकी वृत्ति (स्वभाव) अच्छी हो उसको सरस्वती प्राप्त होती है। एक व्यक्ति के कुल, धन, प्रतिष्ठा शील एवं विद्या हो तो वह महान बन सकता है। परंतु संसार में यह आवश्यक नहीं की सभी पाँच उपलब्ध हों इसलिए किसको छोड़ा जा सकता है।
पाँच में से पहले ‘कुल’ को छोड़ा जा सकता है क्योंकि व्यक्ति कहाँ जन्मा है एवं किस कुल में पैदा हुआ है यह अति महत्वपूर्ण नहीं है। शेष चार में से किसको छोड़ा जा सकता है इसका निर्णय परमात्मा ने दिया केवल संपत्ति किसी काम की नहीं है और केवल बुद्धि किसी काम की नहीं है। संपत्ति के साथ सरस्वती भी आवश्यक और जिसके पास सरस्वती होगी वही संपत्तिवान है तभी संपत्ति मूल्यवान होगी अतः दूसरे नंबर पर लक्ष्मी को भी छोड़ा जा सकता है। तीसरे नंबर पर प्रतिष्ठा को भी छोड़ा जा सकता है किन्तु शील और बुद्धि को नहीं क्योंकि शील और विद्या के बिना जीवन अधूरा है। “शील का नाश सब कुछ विनाश” और विद्या से ही शीलवान बन सकते हैं। इसलिए विद्या प्राप्त करके सन्मति प्राप्त करना है। परमात्मा के मुख से सरस्वती का जन्म हुआ है एवं उनकी वाणी को सरस्वती का रूप माना गया है।
मुनिवर का नीति वाक्य
“‘जिसने नहीं रखा ज्ञान का मान, उसका जीवन अंधकार”
सम्पूर्ण कार्यक्रम अति भव्य एवं प्रेरणा दायक था। कार्यक्रम के प्रभारी दिलीप शाह ने बताया की
लगभग 200 बच्चों ने बहुत शांति से इस आयोजन में भाग लिया। बच्चों के आकर्षण के लिये बहुत सुंदर रूप से हाल की साज-सज्जा पार्श्व मुक्ति युवा मंच एवं युवाओं ने की है । इसके लाभार्थी जयंतिलाल विकास शिल्पा जैन थे।
रिपोर्ट अनिल भंडारी
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